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तो कया मनुष्य को अपने पूर्वजन्म का ज्ञान हो सकता है? हाँ, मनुष्य यदि प्रयास करे तो उसे अपने एक ही जन्म का नहीं बल्कि अनेक जन्मों का ज्ञान हो सकता है। लेकिन उसके लिए साधना की आवश्यकता है और वह साधना सच्ची दिशा में होनी चाहिए। सच्ची साधना द्वारा योगीपुरुष ध्यान की परिपक्व अवस्था में पूर्वजन्म को जान सकता है। इसी तरह भक्तपुरुष ईश्वर की कृपा से इस चीज़ को समज सकता है। योगीपुरुष अपने ही नहीं दूसरों के पूर्वजन्म को जानने की भी योग्यता प्राप्त कर सकता है।
ऋषिकेश में मेरे पास एक महात्मा आए थे। वह किसी भी मनुष्य के भूत भविष्य को बता सकते थे। इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा था कि यह प्रभु की कृपा है। लम्बे अरसे तक मंत्र जप करने से अंत में इष्टदेवता की कृपा हुई और फलतः आज किसी भी आदमी के मुख को देखता हूँ तो उसका भूत भविष्य मेरी नज़र के सामने आ जाता है। प्रभु की ऐसी कृपा है। हिमालय के टिहरी शहर में एक दूसरे योगी से मुलाक़ात हुई थी। उन्होंने कहा था टिहरी से कुछ आगे स्थित उत्तरकाशी में उन्होंने आत्मिक शांति की इच्छा से एक बार नवरात्री व्रत किया। व्रत में वे सिर्फ पानी लेते थे। नौ दिन बीत गए। दसवें दिन बड़े तड़के भगवान दत्तात्रेय के दर्शन हुए। उन्होंने उनसे शुद्ध संस्कृत भाषा में बातें की। उनका सारांश यह था कि उस महात्मा को अब शीघ्र ही शांति प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त उन्होंने पूर्वजन्म की बात भी कही। पूर्वजन्म में आप श्री शंकराचार्य के शिष्य पद्मपादाचार्य के शिष्य थे। इस प्रसंग के थोड़े ही समय बाद उन्हें शांति की अनुभूति हुई। इस प्रकार समर्थ या सिद्ध पुरुषों के अनुग्रह से भी पूर्वजन्म का ज्ञान हो सकता है।

अभी अभी कुछ साल पहले भारत में सांईबाबा नाम के एक सिद्ध पुरुष हो गए। उनको अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त थी। वह किसी भी आदमी की भूत एवं भविष्य की बातें बता सकते थे। मनुष्य ही नहीं अपितु पशु पक्षियों के पूर्वजन्म की माहिती भी वे दे सकते थे। एक बार वे शिरडी गांव से दूर खेतों में घूमने गए। दोपहर का समय था इसलिए वे कहीं छाया में बैठना चाहते थे। उसी समय एक दूसरा आदमी आया। दोनों एक छाया में बैठे और चिलम पीते हुए बातचीत करने लगे। थोड़े ही समय के बाद एक मेंढ़क की डरावनी आवाज़ आई। उस आदमी ने समीप के झरने के पास जाकर देखा तो एक सांप ने मेढ़क को अपने मुंह में पकड़ लिया था। मेढ़क चिल्ला रहा था। उसने सांईबाबा को वह समाचार दिया और कहा कि चलिए उस मेढ़क को बचाइए अन्यथा सांप उसे निगल जायगा। किन्तु सांईबाबा शांति से वह आवाज़ सुनते रहे। उन्होंने चिलम पीना जारी रखा। उस आदमी ने उनकी ऐसी उदासीनता का कारण पूछा तो उन्होंने कहा, मेढ़क की आवाज़ से ज़रा भी डरने की आवश्यकता नहीं, सांप उसे नहीं निगलेगा। यह दोनों हररोज इकट्ठे होते हैं, एक दूसरे की ओर बैर दिखाते हैं और फिर अलग हो जाते हैं। अभी उनकी चिंता किये बगैर चिलम पियो, फिर वहां जायेंगे। मेढ़क की चीख़ अभी तक सुनाई दे रही थी। उस आदमी को चिंता हो रही थी पर साईंबाबा शांतिपूर्वक बात किये जा रहे थे। आखिरकार चिलम पूरी करके वे खड़े हुए और उस आदमी से कहा चलो अब मेढ़क के पास चलें। सांप के पास पहुँचने पर उस आदमी ने देखा तो वह दंग रह गया। सांप ने अभी तक मेढ़क को मुंह में पकड़ रखा था। किन्तु और भी अधिक आश्चर्य तो उसे बाद में हुआ जब झरने के बिलकुल नज़दीक जाकर सांई बाबा ने सांप और मेढ़क को संबोधित करके कहा, क्यों रे वीरभद्राप्पा, यह बसाप्पा को क्यों मुंह में पकड़ रखा है? पूर्वजन्म की दुश्मनी के कारण सांप और मेढ़क बनकर पैदा हुए फिर भी संभले नहीं। ऐसा कब तक करते रहेंगे? यह शब्द सुनते ही सांप ने मेढ़क को छोड़ दिया और दोनों जल के प्रवाह में दौड़ गए। उस आदमी ने आश्चर्यचकित होकर साईंबाबा से इस सब बात का कारण पूछा। बाबा ने कहा, चलो उस वृक्ष के निचे बैठकर तुमसे इन दोनों के पूर्वजन्म की बात कहूंगा। फिर दोनों एक पेड़ के नीचे जा बैठे। साईंबाबा की अलौकिक शक्ति का प्रत्यक्ष सबूत पाकर वह आदमी गद्गद हो गया।

प्रसिद्द महापुरुष श्री रामकृष्ण परमहंस देव की शक्ति भी ऐसी ही थी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को देखकर कहा था कि तू सप्तर्षियों में से एक है। मैं जनता हूँ। तेरे द्वारा संसार का एक महान कार्य होनेवाला है।

इस प्रकार पूर्वजन्म का ज्ञान हो सकता है। पर यह बात सच है कि हर आदमी उसे नहीं प्राप्त कर सकता और पाकर पचाने की शक्ति भी हर मनुष्य में नहीं होती। महापुरुष एवं उच्च कोटि के साधक ही इस ज्ञान को पचा सकते हैं। इस ज्ञान से उनको प्रायः प्रेरणा और उत्साह मिलते है। कभी कभी साधारण मनुष्य को भी पूर्वजन्म का ज्ञान विरासत में मिलता है। पर ऐसे प्रसंग बहुत कम पाए जाते हैं। कुछ लोगों को किसी सिद्ध महात्मापुरुष की कृपा से स्वप्न आदि अवस्था में पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। किन्तु, अधिकांश लोगों को इसकी आवश्यकता नहीं होती। इसके बगैर ही जीवन चलता है और अच्छी तरह चलता है। ईश्वर का दर्शन करने की जरूरत मानव मात्र को है। इसी प्रकार पूर्वजन्म के ज्ञान के बिना भी मनुष्य को शांति एवं मुक्ति मिल सकती है और ईश्वर का दर्शन भी हो सकता है। परमशांति जिन्हें मिली हो और ईश्वर का दर्शन हुआ हो ऐसे लोगों में भी बहुत कम को पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। पूर्वजन्म कैसा भी रहा हो, जीवन विकास के लिए इसी जन्म का मूल्य अधिक है। इस जीवन को उज्जवल बनाने के लिए पुरुषार्थ करना मनुष्य के अपने हाथ में है। जीवन का अच्छी तरह उपयोग करने में वह स्वतंत्र है। इस आज़ादी का योग्य उपयोग करके वह जीवन को जैसा चाहे वैसा बना सकता है। इस चीज़ पर वह जीतना ध्यान दे उतना ही कम है।

- © श्री योगेश्वर (गीता का संगीत)

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