Swargarohan | સ્વર્ગારોહણ

Danta Road, Ambaji 385110
Gujarat INDIA
Ph: +91-96015-81921

भगवान की वाणी सुनकर अर्जुन को आश्चर्य हुआ। उसने तुरंत पूछा कि सूर्य और मनु को पैदा हुए कितने साल बीत गए, आप तो अभी हुए हैं। तब फिर यह कैसे माना जाय कि आपने सूर्य और मनु को कर्मयोग का उपदेश दिया। यह शंका स्वाभाविक है। अर्जुन की शंका का समाधान करने के लिए भगवान कहते हैं कि, “तेरे और मेरे आजतक कितने जन्म हो गए हैं। मुझे उन सबका ज्ञान है, लेकिन तू भूल गया है।” इन शब्दों में एक विशिष्ट सिद्धांत समाविष्ट है। उपनिषद में भी नचिकेता ऐसी शंका उपस्थित करते हुए यम से कहता है कि कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि मृत्यु के बाद जीवन नहीं रहता और कुछ लोग कहते हैं कि रहता है। सच कया है? उपनिषद में दिये हुए उत्तर को गीता स्वीकार करती है और कहती है कि जीवन अनंत है। अनेक बार चोला बदलने के बाद जीवात्मा इस विद्यमान शरीर में आई है। उसकी यात्रा बहुत पुरानी है और आगे भी चलती रहेगी। जब तक पूर्णता की प्राप्ति नहीं होती, जब तक संसार के स्वामी का उसे साक्षात्कार नहीं होता, तब तक जीवात्मा को अनादिकाल से चलती हुई जीवनयात्रा में घूमना ही होगा। यह विधान अटल है। यह लेख सनातन काल से लिखा जा चुका है। उससे कोई मुक्त नहीं हो सकता।

कुछ लोग पूछते हैं कि ईश्वर ने मनुष्य की आंखों के आगे परदा क्यों डाल रखा है? मनुष्य को गत जन्मों का ज्ञान देने में ईश्वर को क्या हर्ज था? यह प्रश्न ही व्यर्थ है। आप ईश्वर में चाहे गुण देखिए चाहे दोष, आपकी आखों के आगे परदा है। अतः यथार्थवादी बनकर वर्तमान परिस्थिति से संतोष मानिए तथा विश्वास रखिए कि ईश्वर की प्रत्येक योजना मंगलमय है और बुद्धिमानी से भरी है। यह सच है कि गत जन्मों के ज्ञान से मनुष्य अनभिज्ञ है। इस जन्म में घटित हुई सब घटनाओं का ज्ञान या स्मरण भी उसे नहीं है। अतीत काल की घटनाओं को भूल जाना कभी कभी मनुष्य के लिए सुखकर बन जाता है। जीवन ऐसे ही चलता है। जीवन की रचना ही ऐसी है कि मनुष्य पुरानी बातों को भूलता जाता है और नई के साथ संबंध स्थापित करता जाता है। दुःख एवं वेदना के कष्ट को कम करने के लिए मानव आगे ही आगे बढ़ता जाता है। निराशा को भूलकर आशा के पंख पर उड़ने लगता है। यदि मनुष्य को इस जन्म के तथा अन्य पिछले जन्मों के सभी सुख दुःख याद रहते होते तो बोज कितना बढ़ जाता। उसकी तनिक कल्पना तो कीजिए। किन्तु वास्तव में परिस्थिति ऐसी नहीं है। विस्मृति इस प्रकार आशीर्वाद के समान है। यदि पूर्वजन्म का ज्ञान हो जाय तो अधिकांश लोगों को इस जन्म में दिलचस्पी नहीं रहेगी, जीवन का राज़ भी खुल जायगा और वह अव्यवस्थित हो जायगा। भविष्य का ज्ञान मनुष्य के लिए अच्छा नहीं है। संसार के सभी मनुष्य आशा के धागे में बंधे है और आशा के कारण ही जीते हैं यह आशा का तंतु आगे के ज्ञान से प्रायः टूट जाता है। भविष्य में आनेवाले दुःखों की कल्पना से जीवन दुःखमय हो जाता है।

एक आदमी ने एक महान संत की बड़ी सेवा की। संत प्रसन्न हुए और बदले में कुछ वरदान मांगने को कहा। सेवक ने उत्तर दिया, यदि आप प्रसन्न हुए हैं तो मुझे मृत्यु का ज्ञान हो जाय ऐसा आशीर्वाद दीजिए। संतपुरुष ने कहा, यह तुमने क्या मांगा? मृत्यु के ज्ञान से तुजे क्या फायदा होगा? सेवक को प्रतीत हुआ कि महापुरुष आनाकानी करते हैं, अतः मृत्यु के ज्ञान में अवश्य कुछ न कुछ रहस्य होना चाहिए। अतएव उसने संत से आग्रह किया कि मैं तो सुखी हूँ, मुझे केवल मृत्यु के ज्ञान का प्रभाव है, इसलिए मुझे वह ज्ञान दीजिए। संतपुरुष ने उसे समजाया कि मृत्यु की जानकारी में मज़ा नहीं है, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। तब उन्होंने कहा जा, आज से तुझे मृत्यु का ज्ञान हो जायगा।

गुरु के वचन के अनुसार उसे मृत्यु की माहिती मिल गई। लेकिन वह तो उससे कांप उठा। उसकी मृत्यु सप्ताह के अंदर होनेवाली थी। इसलिए वह फूट फूट कर रोने लगा। जिस आनंद से वह जीवन व्यतीत करता था चला गया। खाना पीना घूमना सोना सब मुश्किल हो गया। मरने जैसी दशा उसकी तभी से हो गई। दूसरे ही दिन वह उस संत के पास पहुंचा और उनके चरणों में गिर पड़ा। कंपन का कारण पूछने पर उसने कहा मृत्यु का ज्ञान जब से हुआ है तब से मेरे होश उड़ गए हैं। संत ने कहा मैंने तुझे पहले ही बता दिया था। बोल अब मैं कया करूं? भक्त ने कहा, “अब ऐसी कृपा कर दीजिए कि मृत्यु के बारे में प्राप्त ज्ञान को मैं सम्पूर्णतया भूल जाऊँ। मृत्यु तो आयेगी ही, लेकिन बीच का समय मैं शांति से तो गुज़ार सकूं।

संतपुरुष ने कृपा करके उसे पुनः आशीर्वाद दिया और उसका दुःख दूर हो गया। इसके सामने परीक्षित का उदाहरण रख सकते हैं। मृत सांप को शमिक ऋषि के गले लपेटकर जंगल से वापिस लौटे तब ऋषिपुत्र ने उन्हें शाप दिया कि सातवें दिन तक्षक सांप के काटने से तेरी मौत होगी। यह जानकर परीक्षित को शोक हुआ। लेकिन वह समजदार था। इसलिए उस ज्ञान का उसने अपने हित में उपयोग किया। शुकदेव के पास सात दिन तक भगवान का गुणगान सुनकर उसे चिर शांति प्राप्त हुई। परन्तु ऐसे प्रसंग बहुत ही कम होते हैं। मृत्यु के ज्ञान से प्रायः मनुष्य उलज़न में पड़ जायगा। इसलिए इस ज्ञान पर परदा डालकर भगवान ने ठीक ही किया है। और जिसे अपना कल्याण करना है वह मृत्यु के निश्चित ज्ञान के बिना भी करता है। मृत्यु अनिवार्य है, इसे सब जानते हैं। अतः इस ज्ञान का उपयोग मनुष्य, जीवन के हित के लिए कर सकता है। हर आदमी को देरी से या जल्दी से इस संसार से बिदा होना ही है। इस बात को याद करके मनुष्य आज से ही अपने हित साधन में लग सकता है। यह जीवन अपने पिछले जन्मों के कर्मों का फल है। अनंत जन्मों से हम कर्म किया करते हैं, और कर्मों के भले बुरे फल को भोगते आए हैं। यह चक्र चला ही करता है। परमात्मा का साक्षात्कार करने से ही इस चक्र का अंत होगा।

- © श्री योगेश्वर (गीता का संगीत)